विश्वदीपक
हम पत्रकार अक्सर दूसरों पर सवाल उठाते हैं लेकिन कभी खुद पर नहीं. हम दूसरों की जिम्मेदारी तय करते हैं लेकिन अपनी नहीं. हमें लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है लेकिन क्या हम, हमारी संंस्थाएं, हमारी सोच और हमारी कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक है ? ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं है. हम
सबके हैं.
JNUSU अध्यक्ष कन्हैया कुमार को ‘राष्ट्रवाद’ के नाम पर जिस तरह से फ्रेम किया गया और मीडिया ट्रायल करके ‘देशद्रोही’ साबित किया गया, वो बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है. हम पत्रकारों की जिम्मेदारी सत्ता से सवाल करना है ना की सत्ता के साथ संतुलन बनाकर काम करना. पत्रकारिता के इतिहास में हमने जो कुछ भी बेहतर और सुंदर हासिल किया है, वो इन्ही सवालों का परिणाम है.
सवाल करना या न करना हर किसी का निजी मामला है लेकिन मेरा मानना है कि जो पर्सनल है वो पॉलिटिकल भी है. एक ऐसा वक्त आता है जब आपको अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों और अपनी राजनीतिक-समाजिक पक्षधरता में से किसी एक पाले में खड़ा होना होता है. मैंने दूसरे को चुना है और अपने संस्थान ZEE NEWS से इन्ही मतभेदों के चलते 19 फरवरी को इस्तीफा दे दिया है.
मेरा इस्तीफा इस देश के लाखों-करोड़ों कन्हैयाओं और जेएनयू के उन दोस्तों को समर्पित है जो अपनी आंखों में सुंदर सपने लिए संघर्ष करते रहे हैं, कुर्बानियां देते रहे हैं.
(ज़ी न्यूज़ के नाम मेरा पत्र जो मेेरे इस्तीफ़े में संलग्न है)
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