अखिलेश यादव सरकार को क्लीन चिट- मुज़फ़्फ़रनगर दंगे

मुज़फ़्फरनगर दंगे के बाद एक घर
लखनऊ- उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में साल 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों की जांच के लिए गठित आयोग ने सरकार को क्लीन चिट दे दी है, लेकिन तत्कालीन गृह सचिव, ज़िलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को दोषी ठहराया है, उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों की जांच के लिए गठित जस्टिस विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट आज (रविवार) को विधानसभा में पेश की.


आयोग ने अखिलेश यादव सरकार को क्लीन चिट दी है और हालात से सही तरीके से नहीं निपट पाने के लिए स्थानीय अधिकारियों को सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराया है, आयोग ने मुज़फ़्फरनगर के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दुबे और ज़िला मजिस्ट्रेट कौशल राज शर्मा को भी दोषी ठहराया है.

इसके अलावा, आयोग ने जानसठ के पुलिस क्षेत्राधिकारी जगतराम जोशी की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं, मुज़फ़्फरनगर में हुए दंगों में 60 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और 40,000 से अधिक लोग बेघर हुए थे, इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में आयोग का गठन 9 सितंबर 2013 को किया गया था.

इसका काम दंगे रोकने में हुई प्रशासनिक चूकों का पता लगाना था. इसके अलावा इसे दंगे भड़काने में मीडिया और राजनेताओं की भूमिका की जांच भी करनी थी, आयोग को दो महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था. इसकी कार्य अवधि सात बार बढ़ाई गई.

इसके अलावा राज्य सरकार ने 24 सितंबर 2013 को विशेष जांच दल का भी गठन किया था. इन दंगों से जुड़े 567 मुक़दमे दर्ज किए गए हैं, आयोग ने एक्शन टेकन रिपोर्ट यानी कार्रवाई रिपोर्ट में दंगे भड़कने की दो वजहें बताई हैं, इसमें कहा गया है कि दो समुदायों में तनातनी के बाद 27 अगस्त, 2013 को मुज़फ़्फरनगर के तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट सुरेंद्र सिंह और वरिष्ठ पुलिस सुपरिटेंडेंट (एसएसपी) मंजुल सैनी का तबादला किया गया. ये फ़ैसला जाट समुदाय को नागवार गुजरा और ये दंगे भड़कने की वजहों में से एक था.

इसके अलावा 30 अगस्त 2013 को क़ादिर राणा और दूसरे लोगों ने एक ज्ञापन ज़िला मजिस्ट्रेट और एसएसपी को सौंपा. इससे लोग गुस्सा हो गए और दंगा भड़का था, आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि सोशल मीडिया और कुछ अख़बारों ने अफ़वाहें फैलाई थीं, जिससे दंगे फैले थे.

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