हैरानी होती है लोगे की ऐसी सोच,बयानबाज़ी और हद पार करते जुनून से।किसी अन्य खेल नही केवल भारतीय क्रिकेट के प्रति लोगो का भावनात्मक प्रेम समझ नही आता, लगता है भारतीय क्रिकेट
टीम के अलाव किसी अन्य टीम का प्रशंसक होना मापक बन जाता है आपके देशद्रोही होने का.
शर्म आती है मुझे इन "देशप्रेमियों" कि इस संकीर्ण सोच पर, केवल एक खेल को इतना महत्व क्यो? एक खेल के खिलाड़ियो का इतना उच्च स्थान क्यो? इतना भावनात्मक प्रेम क्यो?
क्या केवल भारतीय क्रिकेट और क्रिकेटरों ने ही देश की राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय गरिमा को बढ़ाया बाकी खेलो मे किसी ने कोई योगदान नही दिया?
"मेजर ध्यानचंद सिंह" याद है, भारतीय हॉकी का वो चमकता सितारा।तीन बार ओलम्पिक के "स्वर्ण पदक" जीताने वाले ध्यानचंद "पद्मभूषण" पाने वाले ध्यानचंद, जिनके जन्मदिन को भारत का "राष्ट्रीय खेल दिवस" घोषित किया गया इसी दिन "अर्जुन" और "द्रोणाचार्य" पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं.
बेस्ट फाॅरवर्ड कहे जाने वाले "मुहम्मद शाहीद" ओलंम्पिक मे टीम को स्वर्ण पदक दिलाने वाले, पद्म श्री,अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किये जाने वाले।जाना कभी?
उधम सिंह को जाना बलबीर सिंह को जाना कभी? राष्ट्रीय खेल हाॅकी का नेतृत्व करने वाले सरदार सिंह तक को नही जानते यह "देशप्रेमो"।
भारतीय महिला हॉकी टीम ने 36 साल के लंबे अंतराल के बाद ओलिम्पिक में वापसी की थी किसी को पता तक नही लगा।
"फुटबाॅल" के नायक सुनिल छेत्री सईद मेहंदी, "बाइचुंग भूटिया" जिसे गाॅड गिफ्ट कहा गया भारतीय फुटबाॅल का। क्या कम योगदान दिया इन्होने?
पांच बार विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी मैंगते चंग्नेइजैंग "मैरीकॉम"
नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप,10
राष्ट्रीय खिताब जीतने वाली,अर्जुन पुरस्कार एंव पद्मश्री से सम्मानित, भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाली क्या इनका योगदान, संघर्ष इस भावनात्मक सम्मान के योग्य नही?
सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल, सुशील कुमार, विजेन्द्र सिंह, क्या कम योगदान दिया इन सबने भारतीय खेलो मे?
फिर "वो" सम्मान "वो" ज्ज़बा "वो" जुनून इनके लिए क्यो नही?
केवल एक "खेल" के प्रशंसक ना होने पर देशप्रमी-देशद्रोही के तराज़ू मे तोलना कहा तक सही है?
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