Mar 09, 2016
लखनऊ- मुजफ्फरनगर दंगे के लिए प्रशासनिक चूक सबसे बड़ी वजह थी लेकिन जिले में तैनात अफसरों से लेकर तत्कालीन डीजीपी और प्रमुख सचिव गृह ने सारी नाकामी सोशल मीडिया के मत्थे मढ़ दी। जांच के लिए गठित जस्टिस विष्णु सहाय आयोग को दिये गये बयान में
अधिकारियों ने सारा ठीकरा सोशल मीडिया पर ही फोड़ा और स्थानीय समाचार पत्रों की खबरों को भी जिम्मेदार ठहराया। आयोग की रिपोर्ट में संपूर्ण घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा भी दर्ज है।
जस्टिस सहाय की 775 पृष्ठ की जांच रिपोर्ट के छठे खंड में 756 से 758 पृष्ठ पर तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह आरएम श्रीवास्तव, डीजीपी देवराज नागर, मुजफ्फरनगर के एसएसपी प्रवीण कुमार और बागपत की एसपी लक्ष्मी सिंह के बयान दर्ज हैं। आरएम श्रीवास्तव और देवराज नागर का बयान कई खंडों में हैं। यह बयान 27 अगस्त 2013 से 15 सितंबर 2013 के बीच है। इसी बीच लक्ष्मी सिंह का भी बयान दर्ज किया गया है। नौ सितंबर को प्रवीण कुमार का बयान लिया गया है।
मुजफ्फरनगर दंगा: सवालों के घेरे में जांच रिपोर्ट ?
आरएम श्रीवास्तव ने कहा है कि धार्मिक भावना भड़काने में सोशल मीडिया की भूमिका रही। इसे चेक नहीं किया जा सका। देवराज नागर ने तो कहा कि स्थानीय समाचार पत्रों में घटनाओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ा। प्रवीण कुमार सात सितंबर की जाली कैनाल की घटना के लिए सोशल मीडिया को ही जिम्मेदार ठहराया। प्रवीण कुमार का कहना था कि सोशल मीडिया पर ट्रैक्टर-ट्राली नहर में फेंकने और सैकड़ों जाटों के मारे जाने की खबर से माहौल बिगड़ा।
बागपत की एसपी लक्ष्मी सिंह का कहना था कि कवाल की घटना से दोनों संप्रदायों में अविश्र्वास की स्थिति उत्पन्न हुई। यह स्थिति गांवों में सोशल मीडिया की पहंुच के चलते उत्पन्न हुई। जस्टिस सहाय ने आइएएस अधिकारी भुवनेश कुमार, तत्कालीन एडीजी एलओ अरुण कुमार, आइजी आरके विश्र्वकर्मा समेत कई अधिकारियों के भी बयान दर्ज किये हैं। इस रिपोर्ट में गवाहों और पीडि़तों के भी बयान दर्ज हैं।
संगीत सोम ने साझा किया वीडियो ?
रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि सरधना के विधायक संगीत सोम समेत 229 लोगों ने फेसबुक पर एक वीडियो साझा किया। इस पर लिखा था- भाई सब देखो क्या हुआ कवाल गांव में। यह प्यार का अंत नहीं, शीर्षक का वीडियो भी माहौल खराब करने की वजह बना। दरअसल यह वीडियो तालिबान में दो-तीन वर्ष पुरानी घटना का था।
भाषण रिकार्ड न होने से रासुका का अनुमोदन नहीं ?
सरकार ने भाजपा विधायक संगीत सोम को रासुका में निरुद्ध किया था लेकिन रासुका एडवाइजरी बोर्ड ने इसका अनुमोदन नहीं किया। आयोग के समक्ष आरएम श्रीवास्तव ने माना कि ऐसा प्रशासनिक चूक की वजह से हुआ। अगर नेताओं के भड़काऊ भाषण रिकार्ड किये गये होते तो बोर्ड के सामने हम भड़काऊ भाषण का आरोप साबित कर सकते थे। नंगला मंडौर की महापंचायत में जाट और हिंदू नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिये लेकिन भाषण रिकार्ड न होने से इसके साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुए।
बीट कांस्टेबिल व मुखबिर पर तवज्जो की दरकार ?
विष्णु सहाय ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अंग्रेजों के जमाने की बीट कांस्टेबिल व मुखबिर की व्यवस्था पर भरोसा कायम रखने व इसे सुदृढ़ रखने कर सुझाव दिया है। उनका कहना है कि खासकर गांवों में यह व्यवस्था पुलिस के लिए ऐसी घटनाओं को रोकने में सहायक सिद्ध हो सकती है लेकिन यह देखने में आया है कि हाल के सालों में इस पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया है.
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