ये नफ़रत क्यूं मुस्लमानों से ?

मुझको अफ़सोस तब होता है जब पढ़े लिखे समझदार लोग दुनियां के उन चंद लोगों को देखकर जिनका असल मैं मालूम नहीं है कौन हैं दाढ़ी ओर नाम से मुस्लमान दिखाये जाते हैं ओर पहचान मरने के बाद भी छुपाई जाती है जैसे ओसामा का भूत, ओर ये अपनों के ही ख़ून को बहाते दिखाई देने वाले कम अक्लों को दिख जाते हैं, लेकिन दुनियां के 76 देशों के ढाई अरब सच्चे मुस्लमान दिखाई नहीं

देते जो दुनियां को अपनी सच्चाई मेहनत ओर लग्न से दुनियां को आगे ले जा रहे हैं दुनियां की अर्थव्यवस्था को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं.
सोचो अगर इस्लाम मज़हब क़्तलों ग़ारत करने वाला मज़हब होता तब दुनियां मैं ये चंद सिर फिरे जब आतंक मचा सकते हैं तब इन ढाई अरब मैं से कुछ करोड़ लोग ही अगर लड़ने पर या आतंक के रास्ते पर आ जायें तब दुनियां की शक्ल कैसी होगी, या ये सोचो पूरे के पूरे ढाई अरब मुस्लिम अगर आतंकवादी बन जायें तब दुनियां किसके इशारों पर चलेगी ओर किसकी होगी? मैं कट्टरवादी सोच रखने वालों से कह रहा हुँ वक़्त निकालकर इसपर ज़रूर सोचना तब इस्लाम ओर मुस्लमान असल मैं क्या हैं.
दोस्तों अपना आडियल चंद सिरफिरों को मत बनाओ बनाना है तो ढाई अरब मुस्लिमों को देखो, उनको या उनमें से बनाओ. फिर बात करना मुस्लमान ओर इस्लाम की, हम सत्ता के भूखे नहीं हैं ये भूख हमको नहीं लगती वरना इतनी हिम्मत ओर जज़्बा हर मुस्लमान रखता है जो जायज़ हो उसको हासिल कर ले. 
कोई शक हो तो बताना? 
सम्पादक, मानवाधिकारवादी
एस एम फ़रीद भारतीय

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