क्या इस मासूम की ज़िन्दगी सुरक्षित है, क्या सरकार का ये क़दम जायज़ है?
जानने के लिए पूरी घटना को पढ़ें फिर फ़ैसला करें?
सात कत्ल करने वाली शबनम ने अपना बच्चा कॉलेज फ्रेंड को क्यूं सौंपा ?
क्या बिन लालच मदद को आगे आये हैं जनाब पत्रकार साहब ?
अगर हां तो ये एक अजूबा होगा ओर नहीं तब ये बड़ा अजूबा होगा.
दिसंबर 2008 में अपने प्रेमी के साथ मिलकर परिवार के सात लोगों की हत्या करने वाली शबनम को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई.
जेल में सजा काटने के दौरान सबनम ने एक बेटे के जन्म दिया था और सात साल उसका बेटा जेल में उसके साथ ही रहा था. अब जुलाई 2015 में उसका बेटा जेल से बाहर आया इसके बाद शबनम ने अपने बेटे को उस्मान सैफ़ी और उसकी पत्नी को सौंप दिया है. उस्मान सैफ़ी जो शबनम का कॉलेज फ्रेंड है ओर इस वक़्त जो बुलंदशहर में पत्रकार है ने बताया कि शबनम ने बेटे को सौंपने से पहले उसके सामने दो शर्तें रखी थी, कि उसके बेटे को कभी भी उसके गांव में न ले जाया जाए क्योंकि वहां उसकी जान को खतरा है और दूसरी शर्त ये थी कि उसके बेटे का नाम बदल दिया जाए.
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इसी साल अमरोहा की बाल कल्याण समिति ने विज्ञापनों के जरिए ये कहा था कि अगर बच्चा छह साल से बड़ा है तो महिला कैदी इसे अपने साथ जेल में नहीं रख सकती है. इससे पहले शबनम ने अपने बच्चे को सैफी के साथ भेजने से मना कर दिया था और बाल कल्याण समिति से अनुरोध किया था कि उसके बेटे को किसी भी सरकार की ओर से चलाए जाने वाले आधुनिक मदरसा में भेजा जाए.
इसको लेकर अमरोहा के जिलाधिकारी वेद प्रकाश ने कहा कि हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि शबनम ने कब अपना मन बदला और अपने बच्चे को उस्मान सैफी को देने की बात कही.
सैफ़ी ने कहा कि मुझे दो मई को जेल के अधकारियों की ओर से एक फ़ोन आया जिसमें कहा गया कि मैं बच्चे को गोद लेने को लेकर शबनम से बात कर सकता हूं. उन्होंने कहा कि मैं और मेरी पत्नी ने शबनम से तीन बार मिलने की कोशिश की, लेकिन उसने मिलने से मना कर दिया. सैफी ने बताया कि मैंने लगभग आशा खो दी थी, लेकिन 10 जुलाई को मुझे सरकारी अधिकारियों से संदेश मिला कि शबनम मुझसे मिलना चाहती है और इसके मैंने और मेरी पत्नी ने उससे मुलाकात की और उसने कहा कि वह अपने बच्चे को हमें देने के लिए तैयार है.
कुछ दिनों पहले एक अखबार में आए इंटरव्यू में सैफ़ी ने कहा था कि वह शबनम के बेटे को इसलिए गोद लेना चाहते हैं क्योंकि वह उसके लिए कुछ करना चाहते हैं.
उन्होंने बताया कि जिस शबनम को मृत्यु दंड मिला है वह वो नहीं है जिसे मैं जानता हूं.
उन्होंने बताया कि कॉलेज टाइम शबनम और वह साथ-साथ रहते थे एक ही बस से जाते थे और आपस में जोक भी शेयर करते थे.
उन्हेंने ये भी बताया कि उन दिनों वह पैसे, स्वास्थ्य और पढ़ाई के मामले में कमजोर था और शबनम ने मेरी मदद की थी और उसने मेरी कॉलेज फीस भी भरी थी, इतना ही नहीं वह कॉलेज में हमेशा मेरे साथ खड़ी रहती थी. मैं उसे अपनी बड़ी बहन की तरह मानता हूं.
लेकिन पढ़ाई पूरी करने के बाद हमारा लिंक टूट गया था और इसी दैरान ये घटना हो गई इसे सुनकर मैं बड़ा दुखी हुआ और मैंने अपनी बीवी से कहा कि हमें शबनम के लिए कुछ करना चाहिए. (याद रखें मदद करने वाले ने भी समाज से हटकर प्रेम विवाह किया है )
अपने ही परिवार के सात लोगों को मौत के घाट उतारने वाली शबनम को भले ही अदालत ने फांसी की सजा सुनाई हो, लेकिन आज शबनम को जो सजा मिली है उसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी.
पिछले सात साल से जेल में शबनम के साथ रह रहे उसके बेटे को एक दम्पति के हवाले कर दिया गया. बेटे से अलग होने के चलते शबनम की आंखें भले ही नम हो गई थी, लेकिन जानती वह भी है कि उसके किए गुनाह के आगे ये सज़ा काफी नहीं है.
यूपी के अमरोहा के बावनखेड़ी गांव की रहने वाली शबनम आज से आठ साल पहले आम लड़कियों की तरह ही थी.
एमए पास शबनम गांव के एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी और घर परिवार भी खासा संपन्न था. बावजूद इसके पांचवी पास प्रेमी सलीम के प्यार में अंधी शबनम ने एक रात दुनिया की परवाह किए बिना अपने प्रेमी के साथ परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी.
एक साथ सात हत्याओं से पूरे इलाके में हड़कंप मच गया था. पुलिस के मामले की जांच शुरू करने के बाद जब शबनम और सलीम के खिलाफ सबूत मिले तो पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया.
मुरादाबाद जेल में बंद शबनम ने गिरफ्तारी के बाद जेल में एक बेटे को जन्म दिया, जिसके बाद उसके और सलीम के संबंधों की पोल खुल गई. जेल में जन्मे बेटे का नाम शबनम ने ताज मोहम्मद रखा और उसकी परवरिश में भी जुट गई, लेकिन इसी दौरान अमरोहा की अदालत ने शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुना दी जिसके बाद शबनम के बेटे ताज के लिए एक सरंक्षक की तलाश शुरू की गई.
पत्रकार उस्मान ने भी मेरे जहन मैं कई सवाल खड़े कर दिये हैं ओर सवालों की वजह है हम दोनों का एक ही बिरादर ओर क़बीले से होना.
अब आप बतायें क्या इन बेरहम क़ातिलों का ये मासूम जिस आदमी की पहचान सामने हो उसके पास सुरक्षित है?
या सही क़दम ये होता कि इस मासूम मौहम्मद ताज को चुपचाप किसी दूर दराज़ के मदरसे मैं दाख़िल किया जाता?
लेखक एस एम फ़रीद भारतीय
एनबीटीवी इंडिया डॉट कॉम
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