मुल्क की आजादी में मुसलमानों का अहम रोल ?

लेखक-एस एम फ़रीद भारतीय
अंग्रेजों से लोहा लेने वाले लोह पुरूष बादशाह टीपू सुल्तान ने ही देश में बाहरी हमलावर अंग्रेजो के ज़ुल्म और सितम के खिलाफ़ बिगुल बजाय था और जान की बजी लगा दी मगर अंग्रेजों से समझोता नहीं किया!
पहली जंगे आजादी के महान स्वतंत्र सेनानी अल्लामा फजले हक़ खैराबादी ने दिल्ली की जामा मस्जिद से सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का फतवा दिया था, इस फतवे के बाद आपने बहादुर शाह ज़फर के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और अज़ीम जंगे आजादी लड़ी !

अंग्रेज़ इतिहासकार लिखते हैं की इसके बाद हजारों उलेमाए किराम को फांसी ,सैकड़ों को तोप से उड़ाकर शहीद कर दिया गया था और बहुत सों को काला पानी की सजा दी गयी थी! अल्लामा फजले हक ख़ैराबादी को रंगून में काला पानी में शहादत हासिल हुई !

अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष में मुस्लिम क्रान्तिकारियों, कवियों और लेखकों का योगदान प्रलेखित है, तीतू मीर ने ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह किया था। मौलाना अबुल कलाम आजाद, हकीम अजमल खान और रफी अहमद किदवई ऐसे मुसलमान हैं जो इस उद्देश्य में शामिल थे.

खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमांत गांधी के रूप में प्रसिद्ध) एक महान राष्ट्रवादी थे जिन्होंने अपने 95 वर्ष के जीवन में से 45 वर्ष केवल जेल में बिताया, भोपाल के बरकतुल्लाह ग़दर पार्टी के संस्थापकों में से एक थे जिसने ब्रिटिश विरोधी संगठनों से नेटवर्क बनाया था, ग़दर पार्टी के सैयद शाह रहमत ने फ्रांसमें एक भूमिगत क्रांतिकारी रूप में काम किया और 1915 में असफल गदर (विद्रोह) में उनकी भूमिका के लिए उन्हें फांसी की सजा दी गई).

फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के अली अहमद सिद्दीकी ने जौनपुर के सैयद मुज़तबा हुसैन के साथ मिलाया और बर्मा में भारतीय विद्रोह की योजना बनाई और 1917 में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था, केरल के अब्दुल वक्कोम ख़ादिर ने 1942 के ‘भारत छोड़ो’ में भाग लिया और 1942 में उन्हें फांसी की सजा दी गई थी, उमर सुभानी जो की बंबई अब मुंबई की एक उद्योगपति करोड़पति थे, उन्होंने गांधी और कांग्रेस व्यय प्रदान किया था और अंतत स्वतंत्रता आंदोलन में अपने को कुर्बान कर दिया, मुसलमान महिलाओं में हजरत महल, असगरी बेगम, बाई अम्मा ने ब्रिटिश के खिलाफ स्वतंत्रता के संघर्ष में योगदान दिया है.
जारी है अभी. ....

आज भी इतिहास को नकारकर कुछ घटिया लोग पूछंते हैं तब बता दूं कि 1498 की शुरुआत से यूरोपीय देशों की नौसेना का उदय और व्यापार शक्ति को देखा गया क्योंकि वे भारतीय उपमहाद्वीप पर तेजी से नौसेना शक्ति में वृद्धि और विस्तार करने में रूचि ले रहे थे, ब्रिटेन और यूरोप में औद्योगिक क्रांति के आगमन के बाद यूरोपीय शक्तियों ने मुगल साम्राज्य का पतन करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकीय और वाणिज्यिक लाभ प्राप्त किया था.

उन्होंने धीरे-धीरे इस उपमहाद्वीप पर अपने प्रभाव में वृद्धि करना शुरू किया.

हैदर अली, और बाद में उनके बेटे टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी के प्रारम्भिक ख़तरे को समझा और उसका विरोध किया, बहरहाल, 1799 में टीपू सुल्तान अंततः श्रीरंगापटनम में पराजित हुए, बंगाल में नवाब सिराजुद्दौला ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तारवादी उद्देश्य का सामना किया और ब्रिटिशों से युद्ध किया, हालांकि, 1757 में वे प्लासी की लड़ाई में हार गए.

मौलाना आजाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता और हिन्दू मुस्लिम एकता की वकालत करने वाले थे, यहां 1940 में सरदार पटेल और महात्मा गांधी के साथ आजाद (बांए) को दिखाया गया है.

ब्रिटिश के खिलाफ पहले भारतीय विद्रोही को 10 जुलाई 1806 के वेल्लोर गदर में देखा गया जिसमें लगभग 200 ब्रिटिश अधिकारी और सैनिकों को मृत या घायल के रूप में पाया गया। लेकिन ब्रिटिश द्वारा इसका बदला लिया गया और विद्रोहियों और टीपू सुल्तान के परिवार वालों को वेल्लोर किले में बंदी बनाया गया और उन्हें उस समय इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी.

यह स्वतंत्रता का प्रथम युद्ध था जिसे ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने 1857 का सिपाही विद्रोह कहा, सिपाही विद्रोह के परिणामस्वरूप अंग्रेजों द्वारा ज्यादातर ऊपरी वर्ग के मुस्लिम लक्षित थे क्योंकि वहां और दिल्ली के आसपास इन्हें के नेतृत्व में युद्ध किया गया था। हजारों की संख्या में मित्रों और सगे संबंधियों को दिल्ली के लाल किले पर गोली मार दी गई या फांसी पर लटका दिया गया जिसे वर्तमान में खूनी दरवाजा (ब्लडी गेट) कहा जाता है.

प्रसिद्ध उर्दू कवि मिर्जा गालिब (1797-1869) ने अपने पत्रों में इस प्रकार के ज्वलंत नरसंहार से संबंधित कई विवरण दिए हैं जिसे वर्तमान में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस द्वारा ‘गालिब हिज लाइफ एंड लेटर्स’ के नाम के प्रकाशित किया है और राल्फ रसेल और खुर्शिदुल इस्लाम द्वारा संकलित और अनुवाद किया गया है (1994).

दोस्तों ओर साथियों, 
जैसे-जैसे मुगल साम्राज्य समाप्त होने लगा वैसे-वैसे मुसलमानों की सत्ता भी समाप्त होने लगी, और भारत के मुसलमानों को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ा – तकनीकी रूप से शक्तिशाली विदेशियों के साथ संपर्क बनाते हुए अपनी संस्कृति की रक्षा और उसके प्रति रूचि जगाना था, इस अवधि में, फिरंगी महल के उलामा ने जो बाराबंकी जिले में सबसे पहले सेहाली में आधारित था, और 1690 के दशक से लखनऊ में आधारित था, मुसलमानों को निर्देशित और शिक्षित किया, फिरंगी महल ने भारत के मुसलमानों का नेतृत्व किया और आगे बढ़ाया.

अन्य प्रसिद्ध मुसलमान जिन्होंने ब्रिटिश के खिलाफ आजादी के युद्ध में भाग लिया वे हैं; सर सय्यद और उनके सभी साथी ,मौलाना अबुल कलाम आजाद,मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी, हकीम अजमल खान, हसरत मोहनी डा. सैयद महमूद, हुसैन अहमद मदनी, प्रोफेसर मौलवी बरकतुल्लाह, डॉ॰ जाकिर हुसैन, सैफुद्दीन किचलू, वक्कोम अब्दुल खदिर, डॉ॰ मंजूर अब्दुल वहाब, बहादुर शाह जफर, हकीम नुसरत हुसैन, खान अब्दुल गफ्फार खान, अब्दुल समद खान अचकजई, शाहनवाज कर्नल डॉ॰ एम॰ ए॰ अन्सरी, रफी अहमद किदवई, फखरुद्दीन अली अहमद, अंसार हर्वानी, तक शेरवानी, नवाब विक़रुल मुल्क, नवाब मोह्सिनुल मुल्क, मुस्त्सफा हुसैन, वीएम उबैदुल्लाह, एसआर रहीम, बदरुद्दीन तैयबजी और मौलवी अब्दुल हमीद.
जारी है अभी ......

दोस्तों, 1930 के दशक तक, मुहम्मद अली जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे.
कवि और दार्शनिक, डॉ॰ सर अल्लामा मुहम्मद इकबाल हिंदू–मुस्लिम एकता और 1920 के दशक तक अविभाजित भारत के एक मजबूत प्रस्तावक थे.अपने प्रारम्भिक राजनीतिक कैरियर के दौरान हुसैन शहीद सुहरावर्दी भी बंगाल में राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय थे.

मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली ने समग्र भारतीय संदर्भ में मुसलमानों के लिए मुक्ति के लिए संघर्ष, और महात्मा गांधी और फिरंगी महल मौलाना अब्दुल के साथ स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। 1930 के दशक तक भारत के मुसलमानों ने मोटे तौर पर एक अविभाजित भारत के समग्र संदर्भ में अपने देशवासियों के साथ राजनीति की.

शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश के अशफाक उल्ला खां वारसी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे.
उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया.

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में ‘बिस्मिल’ और ‘अशफाक’ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता की अनुपम आख्यान है.

रफ़ी अहमद किदवाई की क़ुर्बानियों को शायद कांग्रेस भी इस लिए भूल गई कि हमने ख़ुद अपने नेता को भुला दिया, जिस संघ की सरकार आज देश पर हुकुमत के नाम ज़ुल्म कर रही है नेहरू के ज़माने मैं सत्ता हासिल करने से रफ़ी साहब ने ही रोका था.

रफ़ी अहमद किदवाई कौन थे किसी दिन इसपर चर्चा ज़रूर करूंगा ओर आज मुस्लिमों के रहनुमाओं से कहना चाहुंगा कि आप बिना रफ़ी साहब को जाने मुल्क मैं मुस्लमान का भला ओर देश का भला नहीं कर सकते.

Comments