फ़िक्र अपने वजूद की हमको कब होगी ?

वजूद नाम ही ऐसा कि लेते ही या सामने आते ही रौंगटे ख़ड़े हो जाते हैं वजूद? 
ओर जब कोई मुझसे कहे कि क्या है आपकी क़ौम का वजूद तब मैं वही दलीलें देता हुँ कि हमारे बुज़ुर्गों ने कब कब किसको अपने वजूद से ज़मीन से आसमान की बुलंदियों पर पहुंचा दिया ओर ना कोई शिकवा किया ना कोई शिकायत.

कहने को कह तो दिया ओर सामने वाले ने सुनकर
अपने को चुप कर लिया, लेकिन मेरा दिल बैचेन हो गया ओर मुझको सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि सच ही तो कह रहा था वो कि क्या है हमारा या मेरा वजूद ?
अब तक सोच रहा हुँ ओर सोचते सोचते आप लोगों को बीच भी आ पहुंचा हुँ कि सच मैं हमको कोई हक़ नहीं है अपने वजूद के बारे मैं सोचने ओर बनाने का?
क्या हम यूंही अपने वजूद को खोकर दूसरों के वजूदों को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचाते रहेंगे?
क्या हम मासूम हैं या बेवकूफ़? ये सवाल ज़हन मैं हैं मेरे आप बतायें दोस्तों ओर साथियों कि हम क्या हैं मासूम या बेवकूफ़ ?
मेरा जवाब तो ये है आपका ना जाने क्या हो !
मासूम हमारे बुज़ुर्ग हुआ करते थे जिनपर तालीम नहीं थी इल्म नहीं था कोई साधन ओर ज़रिया भी नहीं था अपनों से राब्ता करने या एक दूसरे गुफ़्तगु करने का इसलिए वो मासूम तो थे ही लेकिन अहसान करके भूलने वाले भी थे!

लेकिन आज हमारे पास सबकुछ है तब भी हमको अपने वजूद की फ़िक्र नहीं है हम आज भी अपनें बुज़ुर्गों के रास्ते पर चल रहे हैं, जबकि उन्होनें हमे कोई वसीयत भी नहीं की है कि हमको उनका रास्ता नहीं छोड़ना है ओर ना ही आज वो दौर रहा जो उस वक़्त था.
फिर आज क्यूं हम नहीं फ़िक्र कर रहे हैं अपने वजूद की क्या ये पागलपन ओर बेवकूफ़ी नहीं है, क्या हमारी ये सोच हमको काली गहराई मैं नहीं ले जारही है, क्या हम सबही एक दूसरे से दूर होते नहीं जा रहे हैं, क्या हम ये अपनो के हक़ को दबाकर अनजाने ही बड़ा गुनाह हक़ुकूलइबाद नहीं कर रहे हैं?
हां ये हम सब कर रहे हैं ओर जानबूझकर कर रहे हैं तभी हम परेशान हैं मेहरूम हैं दीन ओर दुनियां की ख़ुशियों से, अभी भी वक़्त है हमको बदलना होगा ओर एक होकर एक लीडर ओर एक पार्टी को चुनना होगा, तभी हम मुल्क मैं आगे बढ़ सकते हैं वरना पिटते आये हैं पिटते रहेंगे, यानि गुनाह ओर बे लज़्ज़त. 
पढ़कर अपनी रॉय ज़रूर दें शुक्रिया 
एस एम फ़रीद भारतीय 
सम्पादक-एनबीटीवी इंडिया डॉट कॉम

Comments