आज जितना अफ़सोस बेज़ुबान गायों की बेदर्दी से भूख से तड़ते हुऐ हुआ इतना दुख ओर अफसोस मुझको अपने करीबी की मौत पर भी नहीं हुआ था.
जिस बदहाली मैं गायों को रखा गया, करोड़ों के घोटाले की तरफ़ इशारा कर रहा है, वहीं गौ रक्षा के नाम पर रखे गये लोगों की भाषा ओर चेहरों को देखकर मुझको ये ख़्याल आया कि दौड़कर जाऊं ओर कानून को अपने हाथ मैं लेकर इनका भी काम तमाम कर इन्हीं बेज़ुबानों के साथ दफ़न कर दूं.
मगर शायद मैं चाहकर भी ना कर पाऊं क्यूंकि मैं इंसान के
साथ मुहब्बत करने वाला मुसलमान हुँ, बस मैं मुल्क के कानून से ये गुज़ारिश कर सकता हुँ कि इन बेगुनाहों की मौत यूं ही बेकार ना हो जाये, इनके गुनाहगारों को सही सबक़ मिलना चाहिये ओर जो गौरक्षा के दीवाने सड़क पर खुले सांड की तरहां इंसानों पर जुल्म करते हैं इसी गाय के लिए उनको भी दबोचा जाये .
लेकिन ये मुमकिन नहीं है मेरे मुल्क मैं यहां एक तबके के लोगों को खुली छूट है ओर इस सरकार मैं तो हौंसले हद से ज़्यादा बुलंद हैं, क्यूकि ख़ूनी खेल खेलकर सत्ता तक पहुंचे लोगों की सरकार है.
क्या कोई है जो इन बेज़ुबानों की मौत के लिए सरकार ओर खुले सांडों पर लगाम लगाने की आवाज़ बुलंद करे, दलित समाज ने ठीक किया इनके साथ वो जीवित समाज है आज ओर मुस्लिम समाज आज सिर्फ अपनों पर ज़ुल्म करने ओर दूसरों का ज़ुल्म सहने के लिए ज़िंदा है.
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