छ: सौ साल गुज़र जाने के बाद भी रोहिंग्या मुस्लिम अपने ही मुल्क मैं पराये हैं क्यूं, क्या किसी के पास जवाब है मेरे सवालों का, म्यांमार में करीब 8 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं और वे इस देश में सदियों से रहते आए हैं, लेकिन बर्मा के लोग और वहां की सरकार इन लोगों को अपना
नागरिक नहीं मानती है क्यूं ?म्यांमार के इन रोहिंग्या मुस्लिमों को अपने ही देश म्यांमार में जहां ख़ौफ़नाक ज़ुल्मों का सामना करना पड़ता है, वहीं बड़ी तादाद में रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश और थाईलैंड की सीमा पर स्थित शरणार्थी शिविरों में अमानवीय स्थितियों में रहने को मजबूर हैं, जानते हैं इनके बारे मैं ?
रोहिंग्या मुसलमान इस्लाम को मानने वाले वो लोग हैं जो 1400 ई. के आस-पास बर्मा आज के म्यांमार के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे, इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला यानि बर्मीज में मिन सा मुन के राज दरबार में नौकर थे, इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में ओहदों से नवाज़ा था.
संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्टों में कहा गया है कि रोहिंग्या दुनिया के ऐसे अल्पसंख्यक लोग हैं, जिनका लगातार सबसे अधिक दमन किया गया है, बर्मा के सैनिक शासकों ने 1982 के नागरिकता कानून के आधार पर उनसे नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए हैं, ये लोग सुन्नी इस्लाम को मानते हैं और बर्मा में इन पर सरकारी प्रतिबंधों के कारण ये पढ़-लिख भी नहीं पाते हैं तथा केवल बुनियादी इस्लामी तालीम हासिल कर पाते हैं.
यूं तो संयुक्त राष्ट्र, एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं रोहिंया लोगों की नारकीय स्थितियों के लिए म्यांमार की सरकारों को दोषी ठहराती रही हैं, लेकिन सरकारों पर कोई असर नहीं पड़ता है, पिछले बीस वर्षों के दौरान किसी भी रोहिंग्या स्कूल या मस्जिद की मरम्मत करने का आदेश नहीं दिया गया है, नए स्कूल, मकान, दुकानें और मस्जिदों को बनाने की इन्हें इजाजत ही नहीं दी जाती.
वहीं संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने म्यांमार को सख़्त चेतावनी दी है कि अगर वह एक विश्वसनीय देश के रूप में देखा जाना चाहता है तो उसे देश के पश्चिमी हिस्से में रह रहे अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों पर बौद्धों के हमले रोकना होगा.
भारतीय अख़बारों ने मानवाधिकारों को बनाए रखने में विफलता के लिए नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची की भी आलोचना की है.
बर्मा से पहले प्रधानमंत्री इज़राइल गये थे तब देश की तमाम अवांम भौंचक्का थी कि ये क्या किया क्यूंकि भारत से पहली बार कोई प्रधानमंत्री इज़राइल गया बहाना चीन ज़रूर है लेकिन सबकी सब समझ मैं आ रहा है मक़सद क्या रहा होगा.
कुछ भी हो हमको यक़ीन है कि कोई हमारा या हमारे भाईयों का इंसानियत के नाते भी साथ दे ना दे दुनियां बनाने वाला हमारे साथ है ओर ये वक़्त तमाम दुनियां के मुस्लमान के लिए इम्तिहान का दौर चल रहा है जल्द सबकुछ ठीक होगा ऐसा हमारा यक़ीन है !
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