दोस्तों बुज़ुर्गों ओर साथियों आदाबो सलाम,
बीती आठ तारीख़ भी सैफ़ी क़बीले के इतिहास मैं दर्ज हो गई, हर आठ अक्टूबर को सैफ़ी पोस्ट की पैदाईश की तारीख़ के लिहाज़ से भी जाना जायेगा जैसे 6 अप्रेल को सैफ़ी सरनेम की पैदाईश के नाम से जाना जाता है ओर तमाम मुल्क मैं क़बीले के लोग पूरे जोश से इस जश्न को मनाते हैं वैसे ही सैफ़ी पोस्ट की टीम मैं नायाब मोतियों को पिरोकर टीम तैयार कर सैफ़ी पोस्ट को ख़बरी के तौर पर आपके बीच लाने का काम किया है.
दोस्तों सैफ़ी पोस्ट की पैदाईश की तारीख़ को एक सबसे बड़ी
वजह से ओर जाना जायेगा, जब भी ये दिनों तारीख़ आयेगी एक इंसान की हिम्मत सोच ओर जज़्बे को भी लोग सलाम करना नहीं भूलेंगे जिसने अपनी सोच को अंजाम तक पहुंचा दिया ओर बहुत ही ज़बरदस्त काम ये किया कि टूटी माला के मोतियों को सैफ़ी पोस्ट को धागा बनाकर सभी बिखरे समाज के मोतियों को पिरोने का काम किया है ओर उस नौजवान का नाम मैं बड़े ही एहतराम के साथ इसलिए लेना चाहता हुँ कि वो उम्र मैं बेशक छोटा है लेकिन उसने क़दम सैफ़ी पोस्ट को हमारे बीच लाने के साथ हमको जोड़ने का बहुत ही बड़ा ओर बड़ी सोच के साथ उठाया है.उस शख़्स का नाम मुहम्मद मुस्लिम सैफ़ी है, शायद आप सभी मेरी बात से इत्तेफ़ाक़ करेंगे ओर ये भी सोचेंगे कि मैं ये दो दिन बाद क्यूं लिख रहा हुँ हाथों हाथ बधाई क्यूं नहीं दी ?
तब मैं बड़ी ही ईमानदारी के साथ आपको बता दूँ कि उस दिन मुझको तारीफ़ के लिए अल्फ़ाज़ नहीं मिल रहे थे ओर मुझको इंतज़ार था कि कोई मेरा अज़ीज़ अपनी जानिब से मुझको शुरू करने के लिए अल्फ़ाज़ों से नवाज़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ, पर मेरी बैचेनी ने मुझको अल्फ़ाज़ तलाशने मैं मदद की जो मुस्लिम सैफ़ी के क़दम के लिए उनकी शान के लिए बेहद कमज़ोर हैं पर ये सोचकर लिख रहा हुँ कि जो हैं वो ना होने यानि ना लिखने से तो बेहतर हैं.
दोस्तों अब हमको चाहिए जैसे हमने सैफ़ी सरनेम को अपनाकर हर साल दिल से ख़ुशियां मनाते है वैसे ही हम इस सैफ़ी पोस्ट की पैदाईश ओर मुस्लिम सैफ़ी की सोच ओर जज़्बे को दिलसे सलाम करते हुए एक माला के मोती बन जायें ?
हमारा खाना-कमाना, चलना-फिरना, उठना-बैठना सबकुछ अपनी आज़ाद ख़्यालों से होता है तब हम क्यूं एक दूसरे से ख़फ़ा रहते हैं आज ये सबसे बड़ा सवाल हमारे बीच बना हुआ है जो हमारी हिम्मत ओर हौंसले को हमेशा कमज़ोर करता रहा है ओर शायद हमारे दिलसे एक ना होने पर करता भी रहेगा.
मैं आप सभी सैफ़ी क़बीले के लोगों से गुज़ारिश करता हुँ कि आप सब गिले शिकवे भूलकर दुनियां के दिखा दें कि जब सैफ़ी समाज भटका हुआ था तब भी वो हुनर का बादशाह था ओर जब एक हुआ है तब बेताज बादशाह है हमसे मुक़ाबला करने की सोच ही इंसान को पैदा नहीं करनी चाहिए.
मेरे अल्फ़ाज़ो मैं कही कौताही हुई हो तब मैं मांफ़ी चाहता हुँ दूसरे मेरी ये पोस्ट किसी की चापलूसी करना नहीं क्यूंकि चापलूसी करना मेरी आदत ओर फ़ितरत नहीं है लेकिन इस नौजवान मुस्लिम सैफ़ी के क़दम ने आज मुझे ये सब अपनी तारीफ़ मैं लिखने के लिए मजबूर कर दिया है, अब आपकी मर्ज़ी मेरी इस पोस्ट को जो चाहें नाम दें मुझको कोई ऐतराज़ नहीं...
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शुक्रिया दोस्तों आपने अपने कीमती वक़्त से हमको नवाज़ा, हमारी कोशिश यही रहती कि आपको सच से सामना कराया जाये.
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