मौजूदा अमेरिकी सरकार ने मुसलमानों पर अपनी सोच को बदला...?

ख़बर एनबीटीवी इंडिया 
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स ने वैश्विक स्तर पर इस्लामोफोबिया से लड़ने के लिए एक बिल को मंजूरी दे दी है, सदन में इस्लामोफोबिया बिल पर हुई वोटिंग में पक्ष में 219 और विपक्ष में 212 वोट पड़े हैं, अब इस बिल को सीनेट में चर्चा के लिए भेजा जाएगा, इस्लामोफोबिया बिल को मंजूरी मिलने के बाद दुनिया के सभी देशों में मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह की वजह से मुसलमानों के ख़िलाफ़ होने वाले घटनाओं को अब अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की वार्षिक मानवाधिकार की रिपोर्ट में शामिल भी किया जाएगा.

अब अमेरिका करेगा मुसलमानों की सदारत, ये एक बड़े ही अचंभे के साथ हैरान करने वाली ख़बर है...?

आपको बता दें कि अमेरिका के मिनेसोटा से डेमोक्रेटिक पार्टी की मुस्लिम महिला सांसद इल्हान उमर समेत 30 से अधिक सांसदों के एक समूह ने इस बिल को लिखा था, इस्लामोफोबिया के इस बिल पर वोटिंग तब हुई है, जब कुछ हफ्ते पहले ही में कोलोराडो से अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन सांसद लॉरेन बोबर्ट ने सोमालिया में जन्मीं डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर के लिये मुस्लिम विरोधी भाषा का इस्तेमाल करते हुए उन्हें ख़ुद 'जिहादी दस्ते' के तौर पर संबोधित किया था, आइए हम जानते हैं कि क्या खास है अमेरिका के इस्लामोफोबिया बिल में...?

आगे अब अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पारित हुए इस इस्लामोफोबिया बिल के तहत, इस्लामोफोबिया की निगरानी और मुकाबला करने के लिए एक विशेष दूत की नियुक्ति की जाएगी, नियुक्त के साथ ही दुनियाभर के देशों में इस्लामोफोबिया की वजह से मुस्लिमों के खिलाफ़ होने वाले मामलों को विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में पेश किया जाएगा, डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर द्वारा लिखे गए इस्लामोफोबिया बिल के अनुसार, ऐसे मामलों पर नजर बनाए रखने के लिए विशेष दूत नियुक्त करने से अमेरिका के नीति निर्माताओं को मुस्लिम विरोधी कट्टरता की वैश्विक समस्या को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी.

 इस विशेष दूत की नियुक्ति का अधिकार स्टेट सेकेट्री के पास होगा, यह विशेष दूत दुनियाभर के देशों की गैर-सरकारी संस्थाओं जैसे (मानवाधिकार पर काम करने वाली संस्थाओं) के जरिये वहां होने वाले मुस्लिम विरोधी मामलों की जानकारी एकत्र करेगा, और इस्लामोफोबिया की वजह से होने वाली इन घटनाओं को प्रकृति और उसकी सीमा के बारे में विस्तृत रिपोर्ट देगा.

इस विशेष दूत का काम होगा कि वह अमेरिका सहित दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय खिलाफ हुई हर हिंसा, शोषण के साथ उनके स्कूलों, मस्जिदों और कब्रिस्तानों समेत अन्य संस्थानों के साथ हुई किसी भी घटना की रिपोर्ट बनाएगा, राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा के मामलों की जानकारी निकालने व सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया में मुस्लिमों के प्रति हिंसा के कृत्यों और घृणा को बढ़ावा देने या सही ठहराने के प्रयास करने के बारे में भी रिपोर्ट देगा.

ट्रम्प के अमेरिका ने चीन को हर मोर्चे पर घेरने की कवायद तेज कर दी थी, कोरोना संक्रमण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) में जवाबदेही तय करने के लिए प्रस्ताव पेश करने के बाद अमेरिका ने अब चीन को उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न पर घेरने का खाका बना लिया था, अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने उइगर मुस्लिमों के जिम्मेदार अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को भारी बहुमत से मंजूरी दे दी थी, अमेरिका के इस मुस्लिम कार्ड से उन तमाम देशों की आवाज और मुखर हो गई, जो फिलहाल चीन की दबंगई के चलते उइगर मुसलमानों पर हो रहे जुल्म को लेकर खुलकर सामने नहीं आ पा रहे थे. 

जाहिर है इससे पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान की मुस्लिम सियासत पर भी विपरीत असर पड़ा, जो भारतीय मुसलमानों को लेकर तो वैश्विक मंचों पर प्रचार करते आ रहे थे, लेकिन उइगर मुसलमानों पर चुप्पी साधे रहते थे.

उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न के जिम्मेदार अधिकारी पर प्रतिबंध का रास्ता साफ करता यह बिल अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में भारी बहुमत से पास हुआ, इस बिल के लिए हुए मतदान में इसके पक्ष में 413 वोट पड़े, जबकि महज एक वोट विरोध में पड़ा, सीनेट में बिल के पारित होने के बाद अब चीन पर उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के लिए प्रतिबंध लगाया जा सकता है, इसके दायरे में सबसे पहले शिनजियांग के शीर्ष कम्युनिस्ट अधिकारी चेन क्वांगो की गरदन आ रही थी, इसके साथ ही उन कंपनियों और उनके निदेशकों पर भी शिकंजा कसा, जिन्होंने शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के लिए डिटेंशन कैंप बनाए थे, सीनेट में बहुमत से पारित होने के बाद इस बिल को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मंजूरी के लिए व्हाइट हाउस भेजा गया था.

हम आपको बता दें कि इस्लाम को मानने वाले उइगर समुदाय के लोग चीन के सबसे बड़े और पश्चिमी क्षेत्र शिनजियांग प्रांत में रहते हैं, इस प्रांत की सीमा मंगोलिया, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के साथ-साथ चीन के गांसू एवं चिंघाई प्रांत एवं तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से मिलती है, तुर्क मूल के उइगर मुसलमानों की इस क्षेत्र में आबादी एक करोड़ से ज़्यादा है, इस क्षेत्र में उनकी आबादी बहुसंख्यक थी, लेकिन जबसे इस क्षेत्र में चीनी समुदाय हान की संख्या बढ़ी है और सेना की तैनाती हुई है तब से यह स्थिति बदल गई है.

करीब दो हजार साल तक आज के शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र पर एक के बाद एक खानाबदोश तुर्क साम्राज्य ने शासन किया, उनमें उइगुर खागानत प्रमुख है जिन्होंने आठवीं और नौवीं सदी में शासन किया, उइगुरों ने अपने अलग साम्राज्य की स्थापना की, मध्यकालीन उइगुर पांडुलिपि में उइगुर अली का उल्लेख है जिसका मतलब होता है उइगुरों का देश.

उइगुर का चीनी इतिहास 1884 में शुरू होता है, चिंग वंश के दौरान इस क्षेत्र पर चीन की मांचू सरकार ने हमला किया और इस इलाके पर अपना दावा किया, फिर इस क्षेत्र को शिनजियांग नाम दिया गया जिसका चीनी भाषा मैंड्रिन में अर्थ होता है 'नई सीमा' या 'नया क्षेत्र', 1933 और 1944 में दो बार उइगुर अलगाववादियों ने स्वतंत्र पूर्वी तुर्किस्तान गणराज्य की घोषणा की, 1949 में चीन ने इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया और 1955 में इसका नाम बदलकर शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र कर दिया.

वहीं बीते कुछ समय के दौरान इस क्षेत्र में हान चीनियों की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी हुई, उइगरों का कहना है कि चीन की वामपंथी सरकार हान चीनियों को शिनजियांग में इसीलिए भेज रही है कि उइगरों के आंदोलन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट को दबाया जा सके, चीनी सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियां भी कुछ ऐसा ही दर्शाती हैं, शिनजियांग प्रांत में रहने वाले हान चीनियों को मजबूत करने के लिए चीन सरकार हर संभव मदद दे रही है यहां तक कि इस क्षेत्र की नौकरियों में उन्हें ऊंचे पदों पर बिठाया जाता है और उइगुरों को दोयम दर्जे की नौकरियां दी जाती हैं, कुछ जानकार चीनियों को नौकरियों में ऊंचे पदों पर बिठाने का एक कारण यह भी मानते हैं कि सामरिक दृष्टि से शिनजियांग प्रांत चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और ऐसे में चीनी सरकार ऊंचे पदों पर विद्रोही रुख वाले उईगरों को बिठाकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती.



अगर चीनी सरकारी मीडिया की बात मानें तो इस सब के लिए उइगरों का संगठन 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' दोषी है, सरकार का कहना है कि इस हिंसा के लिए विदशों में बैठे उइगर नेता जिम्मेदार हैं, उसने 2014 में इन घटनाओं के लिए सीधे तौर पर वरिष्ठ उइगर नेता लहम टोहती को जिम्मेदार ठहराया था, इसके अलावा इन घटनाओं में डोल्कन इसा का हाथ बताते हुए उन्हें 'मोस्ट वांटेड' की सूची में रखा गया.

इन मामलों को लेकर चीन में कई उइगर नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया था, वहीं उइगर नेता और यह संगठन इन सभी आरोपों को झूठा और मनगढ़ंत बताते हैं, उनका कहना है कि इन सभी मामलों के लिए चीनी सरकार दोषी है, जहां तक बाकी दुनिया की बात है तो अमेरिका ने 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' को उइगरों का एक अलगाववादी समूह तो बताया है, लेकिन, उसका यह भी कहना है कि इस समूह में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की क्षमता नहीं है.

और अब अमेरिका मैं बने कानून को तहत...?

मुस्लिम समुदाय के खिलाफ़ इस तरह के प्रोपेगेंडा को ख़त्म करने के लिए देशों की सरकार ने किस तरह से जवाब दिया...? 

मुस्लिमों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को बचाने के लिए सरकारों ने कौन से कानून बनाए और लागू किए...? 

मुस्लिम विरोधी चीजों को खत्म करने के लिए सरकारों ने क्या किया...? 

इस जैसी तमाम जानकारियां इस्लामोफोबिया बिल के जरिये अमेरिका के सदन की वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में शामिल की जाएंगी, हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी ने इस्लामोफोबिया बिल को जल्दबाजी में लाया गया और पक्षपातपूर्ण बिल बताया है.

इल्हान उमर द्वारा लाए गए इस इस्लामोफोबिया बिल में मुस्लिमों के खिलाफ़ तथाकथित अत्याचारों के लिए भारत को भी चीन और म्यांमार की श्रेणी में रखने का प्रावधान था, जिसपर भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से जवाब दिया गया था कि 'भारत लंबे समय से अपनी धर्मनिरपेक्ष साख, सहिष्णुता और समावेशिता को बरकरार रखते हुए सबसे बड़े लोकतंत्र और बहुलवादी समाज के तौर पर अपने दर्जे को लेकर गौरवान्वित महसूस करता है, भारत के संविधान में देश के अल्पसंख्यक समुदायों समेत उसके सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं. 

भारत का संविधान सभी की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है और लोकतांत्रिक सुशासन और कानून व्यवस्था, मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देती है और उनकी रक्षा करती हैं, हालांकि अब इस प्रावधान को हटा दिया गया है, लेकिन, इस्लामोफोबिया बिल पारित होने के बाद अब भारत में होने वाली एक छोटी सी भी घटना को अमेरिका की वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट में दर्ज कराया जाएगा, जिस पर राजनीतिक हितों के लिए भविष्य में हो-हल्ला मचाए जाने की भरपूर संभावना बनी हुई है.

इसी साल अक्टूबर में इस बिल को पेश करते समय डेमोक्रेटिक सांसद इल्हान उमर ने कहा था कि दुनिया के हर कोने में इस्लामोफोबिया में तेजी देखी जा रही है, उनके कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया है, चाहे चीन में उइगर समुदाय हो या म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ किए जा रहे अत्याचार, भारत और श्रीलंका में मुस्लिम आबादी के खिलाफ़ की जा रही कार्रवाई हो या हंगरी और पोलैंड में मुस्लिम शरणार्थियों व अन्य मुस्लिमों को बलि का बकरा बनाना, न्यूजीलैंड और कनाडा में मुस्लिमों को निशाना बनाते हुए श्वेतों के वर्चस्व वाले लोगों की हिंसा के कृत्य या मुस्लिम बहुल देश जैसे कि पाकिस्तान, बहरीन और ईरान में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदायों को निशाना बनाना हो, इस्लामोफोबिया की समस्या वैश्विक है.

डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर इस्लामोफोबिया बिल पर चर्चा करते हुए कहा कि 'एक अमेरिकी होने के नाते हमें हर तरह की कट्टरता के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना है, वास्तव में इस्लामोफोबिया बिल का यहूदी विरोधी कानून से प्रेरणा लेते हुए ही बनाया गया है, इल्हान उमर ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां हर कोई अपनी धार्मिक पृष्ठभूमि और विश्वासों के आधार पर उत्पीड़ने से मुक्त है, वहीं रिपब्लिकन सांसदों का मानना था कि इस्लामोफोबिया बिल पूरी तरह से गैर-जरूरी है और इसका इस्तेमाल फ्री स्पीच को रोकने के लिए किया जा सकता है.

साथ ही हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी के रिपब्लिकन सांसद माइकल मैककॉल ने कहा कि यह शब्द संघीय कानूनों में कहीं नहीं दिखाई देता है, यह इतना अस्पष्ट और व्यक्तिपरक है कि इसका इस्तेमाल पक्षपातपूर्ण उद्देश्यों के लिए भाषण के खिलाफ किया जा सकता है, यहां तक ​​​​कि शब्द 'फोबिया' (जिसका अर्थ भय है) को भी तर्कहीन तरीके से भेदभाव बना दिया गया है, माइकल मैककॉल ने दावा किया कि इस्लामोफोबिया बिल अन्य धर्मों के उत्पीड़न पर मुसलमानों के धार्मिक उत्पीड़न को प्राथमिकता देता है.

करोड़ों मुसलमान ही नहीं बल्कि बे गुनाह इंसानों की जान लेने वाले अमेरिका की मौजूदा सरकार की ये सोच सच मैं दुनियां को चौंकाने वाली ही नहीं बल्कि आंखें खोलने वाली है, अब अगर अमेरिकी संसद मैं कानून बना है तब ये उम्मीद भी है कि इस कानून को ईमानदारी से लागू भी किया जायेगा, सवाल सिर्फ़ मुसलमानों के उत्पीड़न का नहीं है, हर उस बे गुनाह का है जो ऐसी दर्दनाक घटनाओं को शिकार होते हैं जो धर्म पर आधारित हैं.

धर्म की कट्टरता जहां इंसान की कामयाबी मैं अड़ंगा हैं, वहीं ऐसी घटनाऐं मुल्क को आधुनिकता से दूर ले जाकर भुखमरी की तरफ़ ले जाने वाली होती हैं, धर्म को सहारा बनाकर सरकार बना तो सकते हो लेकिन कामयाबी के साथ काम को अंजाम नही दे सकते...??

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