हम मिलकर अब गांधी को फिर मरने नहीं देंगे...?

"एस एम फ़रीद भारतीय"

फिर से जान लो, गांधी कोई भगवान नहीं, कोई अवतार नहीं, कोई नबी भी नहीं, ना ही जीसस है, वो एक बहुत मामूली इंसान था, जिसे उसकी सोच और कर्त्तव्य ने महात्मा बना दिया,जो कुछ सोचता था, बोलता था.. लोग दिलसे सुनते थे, मान भी

जाते थे, या नहीं भी मानते थे, तब अगली बार ज़रूर मान लेते थे.

आज भी लोग गांधी को पूजते हैं,
मन्दिर में नही, बल्कि हृदय में...!

माना कि गांधी ईश्वर नही, माना वह आलोचना से परे नहीं, क्यों हो, हम लोग मैं से कुछ तो यहां ईश्वर की भी आलोचना करते है, श्रीराम द्वारा शंम्बूक की हत्या पर, बाली को छुपकर मारने पर, स्त्री के त्याग पर। टिप्पणी कृष्ण पर भी करते हैं, संविधान पर भी.

आलोचना से परे तो कोई नही, गांधी भी नहीं, हम भी नहीं तुम भी नहीं, ना हमारे नेता और ना ही तुम्हारे नेता.

पर तय तो हो के आलोचना किस बात की करेंगे...? क्या सत्य बोलने के आग्रह पर, क्या अहिंसा के प्रण पर...??क्या हम भरोसे, मुस्कान, प्रेम और एकता के विचार के लिए गांधी का विरोध करेंगे, या भाईचारे के आग्रह पर...???

हो कहां पाता है आपसे...? आप जब झूठ फैलाते है, तो खुद ही उसे "असली सच" का नाम देते हो, सत्य का ढोंग ही सही, वो आपकी और आपके नेताओं की भी जरूरत है, फिर उसके बाद आप हिंसा चाहते हैं, पर उसे "नये स्वाधीनता संग्राम" का नाम देकर प्रतिष्ठित करते हो...? क्योंकि बापू के स्वाधीनता संग्राम में आप दिखे ही नहीं थे कहीं, आज शर्म आती है.

आप भी एकता चाहते हैं, पर अपने वर्ण, जाति के लोगों के बीच..। क्योंकि सेना बनानी है न आपको, एकता की बात, फायदेमंद दायरे में आप भी चाहते हो, जब गांधी की शिक्षाओं से, उनके असर और व्यक्तित्व से न लड़ सके, तो आपने गांधी को ही खत्म कर दिया...!

इस उम्मीद में कि विचारों का ये झरना मिट जाए, वो गोडसे जो कर गया, कुछ अधूरा रह गया, लेकिन गांधी नहीं मिटा, वो और बड़ा हो गया, इसलिए आप गोडसे का कद बढ़ा रहे हो, गांधी को बार बार मारकर, मगर गांधी का कंद उतना ही बड़ा होता जाता है.

आप नाथूरामों की संख्या बढ़ा रहे हो.

एक शताब्दी बाद भी आपकी मजबूरी है- गोडसे का समर्थन, हत्या का समर्थन, अपराध का समर्थन, निरीह वृद्ध की छातियों से बहते लहू की कल्पना करते हैं, लेकिन विशाल गांधी ठहाका लगाकर हंसता है, और आप पिस्तौल उठाकर फिर-फिर कोशिश करते हो.

सम्भव है कि गोडसे अच्छा पुत्र, पिता, छात्र, या आपके संगठन का समर्पित कार्यकर्ता या रहा हो, इस बात की प्रशंसा आप ख़ुद ही कर लीजिए, गुणों के आधार पर इस देश मैं पूजा रावण की भी हो सकती है और हो भी रही है, महिषासुर की भी होती है, और जिन्ना की तस्वीर भी उनके विश्वविद्यालय में हो सकती है.

मगर रावण द्वारा स्त्री अपहरण का प्रशंसक कोई नहीं करता, जिन्ना के बंटवारे की जिद का समर्थक कोई नहीं करता, ऐसे ही गोडसे द्वारा गांधी की हत्या की प्रशंसा नहीं हो सकती, निहत्थे, प्रार्थना को जाते एक कृशकाय वृद्ध के पैर छूकर उसे मार डालना, कतई कायरतापूर्ण जघन्य, क्रिमिनल एक्ट था, इसकी इजाज़त न हिन्दू धर्म देता है, न हमारा आत्मसमर्पित संविधान.

नाथूराम गोडसे भारतवर्ष के एक क्रांतिकारी विचारक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ एक हिंदू महासभा के अध्यक्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सदस्य भी था, एक समय ऐसा था, जब स्वयं नाथूराम गोडसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के साथ स्वतंत्रता के संग्राम में उनका सहयोग किया करते था.


इतना ही नहीं नाथूराम गोडसे पूजनीय बापू जी को बहुत सम्मान और समर्थन भी प्रदान किया करते था, मगर कुछ कारण वश नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की हत्या भी कर दी थी, नाथूराम का मानना था कि गाँधी द्वारा किए गए कुछ ऐसे कार्य थे, जिन्हें उनकी हत्या करने को विवश कर दिया था.

देशभक्ति की भावना रखने वाले नाथूराम गोडसे जी का जन्म 19 मई सन 1910 में हुआ था, और उनका जन्म महाराष्ट्र के पुणे जिले के बारामती गांव में हुआ, जिस परिवार में जन्म लिया वह परिवार मराठी हिंदू परिवार था और जन्म के दौरान इसका नाम नाथूराम गोडसे नहीं बल्कि “रामचंद्र” रखा गया था.


गोंडसे के पिता विनायक वामनराव गोडसे पेशे से एक पोस्ट ऑफिसर थे, जब उनकी मां का विवाह इनके पिता के साथ नहीं हुआ था, तब उनकी मां का नाम गोदावरी हुआ करता था और शादी के बाद उनकी मां का नाम लक्ष्मी रख दिया गया, नाथूराम गोडसे के पैदा होने से पहले इनकी मां को तीन बेटे और एक बेटी थी, परंतु उनके तीन बेटों के मृत्यु जन्म लेने के दौरान ही दुर्भाग्य हो चुकी थी.


बस यही सोचकर इसकी मां ने नाथूराम गोडसे का जन्म होने के बाद इनका पालन-पोषण लड़कियों की तरहां करना शुरू कर दिया, इसके जन्म के दौरान इसका नाम नाथूराम गोडसे नहीं बल्कि रामचंद्र रखा गया था, जैसा कि इनकी मां ने इनको लड़कियों की भांति पाला तो इसलिए इसकी नाक भी छिदवा दी गई थी, इसकी नाक मैं दुआ कर एक छल्ला भी डाल दिया था.


जब नाथूराम गोडसे अपने आगे की शिक्षा को प्राप्त कर रहा था, तब वो गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित हुआ करता था, कहते हैं कि नाथूराम का स्वभाव बहुत ही सच्चा, शांत, आगे बढ़ने वाला, ईमानदार और बुद्धिमता वाला व्यक्तित्व का था.


वर्ष 1930 में जब नाथूराम गोडसे ने पढ़ाई कर रहा था, तब इसके पिता का ट्रांसफर महाराष्ट्र के रत्नागिरी शहर में हुआ और कि वो अपने माता-पिता के साथ में ही रहने लगा, इसी दौरान नाथूराम गोडसे की मुलाकात एक कट्टर हिंदुत्व वाले व्यक्ति वीर सावरकर से हुई, तभी से इसने अपना संपूर्ण जीवन को राजनीतिक क्षेत्र में न्योछावर करने का विचार भी किया.


नाथूराम गोडसे का मन तो पहले से ही राजनीतिक क्षेत्र में आने के लिए लगा रहता था, इसकी वजह से उसने दसवीं की पढ़ाई छोड़कर सामाजिक कार्यों में अपनी सहभागिता जताने के लिए आगे आया,  फिर उसने हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसे आज आरएसएस कहते हैं, के कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की.


पहले से ही नाथूराम गोडसे मुस्लिम लीग वाली अलगाववादी राजनीति के विरोध में था, हिंदू महासभा समूह के जुड़ने के बाद ही नाथूराम गोडसे ने इस समूह के लिए एक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया था, जिसका नाम ‘अग्रणी’ था और यह मराठी भाषा में प्रकाशित हुआ करता था.

आगे चलकर यही समाचारपत्र “हिंदू राष्ट्र” के नाम से विश्वविख्यात हो गया, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने आंदोलन शुरू किया जो कि यह एक अहिंसक और प्रतिरोधी आंदोलन के रूप में था और इस आंदोलन में हिंदू महासभा के समूह ने भी गांधी जी का संपूर्ण रूप से समर्थन भी किया था.


कहते हैं कि आगे चलकर यह समूह गांधीजी के विरोध में खड़ा हो गया, क्योंकि इन लोगों का कहना था कि गांधी जी हिंदुओं और अल्पसंख्यक में भेदभाव कर रहे हैं, अल्पसंख्यक समूह के चक्कर में उनको खुश करने के चक्कर में गांधीजी अभी हिंदुओं के हित को नजरअंदाज करते हुए आ रहे हैं, इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि भारत एवं पाकिस्तान के विभाजन का मुख्य कारण स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी है, पाकिस्तान और भारत के विभाजन के समय न जाने कितने हिंदू और मुस्लिम लोग बिना कारण के ही मार दिए गए थे, इन सभी कारणों से नाथूराम गोडसे को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विरोध में जाना पड़ा था.


रोज़ की तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शाम को ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे और उसी समय नाथूराम गोडसे गांधीजी के समीप जाता है और उनको लगातार तीन गोलियां पिस्तौल से मार देता है, नाथूराम गोडसे ने बियरट्टा एम 1934 सेमी-आटोमेटिक नामक पिस्तौल से गांधी जी गोली मारी थी, गोली मारने के बाद नाथूराम गोडसे वहां से भागा नहीं बल्कि बड़ी ही शांति से अपनी गिरफ्तारी करवाई थी.


उसके द्वारा किए गए इस अपराध में कुल 6 लोगों ने उसका सहयोग किया था, इसमें नारायण आप्टे भी सम्मिलित था, बापूजी की घटना स्थल पर ही तुरंत मृत्यु हो गई उन्हें बचाया न जा सका क्योंकि उस दौरान काफ़ी समय बीत चुका था.


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मृत्यु करने के बाद नाथूराम गोडसे जी का क्या हुआ...?



नाथूराम गोडसे हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते थे तो इसीलिए इन दोनों समूह को उस दौरान अवैध घोषित किया गया, आगे चलकर आरएसएस को गांधी जी की मृत्यु में उनका हाथ नहीं था इसकी पुष्टि हो गई आगे वर्ष 1949 में आरएसएस पर लगा प्रतिबंध भारत सरकार द्वारा हटा लिया गया.


कहते हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की मृत्यु होने के बाद भारत में उस दौरान बहुत बड़े दंगे होने शुरू हो गए थे, और ब्राह्मण एवं मुस्लिम आपस में लड़ने लगे थे और उसमें बहुत लोगों की जानें भी गई थी, उस वक्त हो रहे भारत देश में दंगे में कई परिवारों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया.


उस वक़्त की भारत सरकार के ऊपर भी काफी ज्यादा आरोप लगाए गए थे, लोगों का कहना था कि महात्मा गांधी जी की मृत्यु में भारत सरकार का भी कहीं ना कहीं पर हाथ ज़रूर है, उस दौरान कई लोगों का कहना था कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ऊपर पहले भी कई तरहां के आत्मघाती हमले किए गए लेकिन भारत सरकार इसके लिए क्यों गंभीर नहीं थी, इन्हीं सभी चीजों के बीच नाथूराम गोडसे को भी बापूजी का हत्यारा घोषित करते हुए, उसको मृत्युदंड देने का निर्णय लिया गया.



गांधी हत्या केस के फैसले में नाथूराम के साथ नारायण आप्टे को भी उसका पूरा सहयोग करने के जुर्म में नाथूराम गोडसे को फांसी देने का निर्णय लिया गया, इसके साथ ही हिंदू महासभा के सदस्य वीर सावरकर को भी इस केस का अपराधी माना गया था, परंतु आगे चलकर इनके ऊपर से यह आरोप भी हटा दिया गया था.


1 वर्ष के जेल में अपराधी के दौरान उसने एक किताब भी लिखी थी जिसका नाम “व्हाय ई किल्ड गांधी” का नाम दिया था, इस किताब में उसने महात्मा गांधी जी के मारने के पीछे अपने कारण को व्यक्त किया हुआ है, मगर उसकी इस किताब को प्रकाशित होने से ही रोक दिया गया.



गोंडसे के आख़िरी अल्फ़ाज़
, मुझे विश्वास है कि अगर मनुष्य द्वारा स्थापित न्यायालय से उपर कोई न्यायालय होगा तो उसमे मेरे कार्य को अपराध नही समझा जाएगा, मैंने देश और जाति की भलाई के लिए ये कार्य किया है.


अखंड भारत अमर रहे वंदेमातरम्...?

भगवान् करे हमारा देश फिर अखंड हो और जनता उन विचारो का त्याग करे जो अत्याचारी के आगे झुकने की प्रेरणा देते है, भगवान से यही मेरी अंतिम प्रार्थना है.

सवाल- नाथूराम गोडसे को फांसी कहां पर दी गई...?जवाब है- पंजाब की अम्बाला जेल में उसे फ़ांसी दे दी गई.

इसलिए बेशक आप लोग गांधी की आलोचना कीजिए, गाली नही देने देंगे, शरीर को मार डाला आपने, आत्मा छेदने की इजाज़त ना कल थी और नी ही आने वाले कल होगी, देश, किसी की आलोचना पर सहिष्णुता हो सकता है, हत्या पर नहीं.

आप सभी कान खोलकर एक बात फिर सुन लो...?


वक़्त आने पर हर गोडसे को सलाखों के पीछे डाला जाएगा, हो सकता है चौराहों पर घसीटा जाए, वो भी रायपुर से नागपुर तक, वो जहां छुपा बैठा होगा वहीं से निकाल लिया जायेगा, और खोजकर उसे उसके अंजाम तक भी संविधान के अनुसार भेजा जाएगा, आप जितना ज़ोर लगा सकते हो, लगा लो गांधी ना तो कल मरा था और ना आने वाले कल तुम मार पाओगे, जेब मैं गांधी को रखकर या गांधी छाप नोटों की ख़ातिर दूसरे के हाथों की कठपुतली बनने वालो.

इस बार हम मिलकर गांधी को मरने नही देंगे, मरेंगे नये पैदा हुए गौंडसे फिर से, संविधान से...!
जय हिंद जय भारत 
किसान और जवान ज़िंदा बाद
गांधी अमर था अमर रहेगा.

#बापू #गांधी #Gandhi

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